I was feeling strangely creative last night so I wrote a silly little ghazal. And what's the use of writing anything if I don't post it and let people make fun of it.
याद जी का जंजाल हो गयी है,
मोहब्बत अब मलाल हो गयी है,
तेरी हाँ में जवाब है इसका,
ज़िंदगी एक सवाल हो गयी है
सिर्फ़ एक तेरे इश्क़ की रूह से,
मेरी हस्ती कमाल हो गयी है,
यह कैसा इंतज़ार है यारब,
हर घड़ी एक साल हो गयी है,
सचाई आज के इंसानो की,
एक बुझती मशाल हो गयी है,
ये दुआ का असर है आख़िरकार
हिज्र की रात शब-ए-विसाल हो गयी है,
ज़िंदगी ख्वाब थी कभी "साहिल",
आज बस एक मिसाल हो गयी है.
Then I realized there were still possibilities in this rhythm so,
इसी ज़मीन में आगे हज़ल सुनें.
अर्ज़ किया है कि..
किस तरह इस्तमाल हो गयी है,
मेरी टाई उनका रुमाल हो गयी है,
लैला-मजनू सी दास्तान थी मेरी,
आज विक्रम-बेताल हो गयी है.
रोटी दाँतों-काटी थी जिनकी कभी,
उनकी जूतों में दाल हो गयी है.
पहले हिरनी सी चाल थी उसकी,
बाद शादी भूचाल हो गयी है.
जब से बीवी का फोन आया है,
उनकी हालत बेहाल हो गयी है.
पोलीस-वालों से माँगता है दाम,
पानवाले की इतनी मज़ाल हो गयी है.
भूल जा सुर और ताल को "साहिल",
अब सिर्फ़ एक हॅड-ताल हो गयी है.
4 comments:
Wah Wah Haasya Kavi Sunil Saahab bahut khoob, bahut badhiya.
really nice.
Hehe, Thanks, AH. :)
Gajabe kar diye... :P
LOL, I really enjoyed it.
Thank you, Sagar. Glad you enjoyed it. :)
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