धीरे धीरे रे मना धीरे सब कुछ होय माली सींचे सौ घड़ा ऋतू आये फल होय
मैं तो कहता हूँ ज़िन्दगी में अच्छी चीज़ें धीरे धीरे ही होती हैं. सुनी है वो ग़ज़ल "रफ्ता रफ्ता वो मेरी हस्ती का सामां हो गए..."? रफ्ता रफ्ताा यानी धीरे धीरे, क्या समझे?
फिर जगजीत सिंह जी ने भी तो गयी है वो ग़ज़ल अमीर मीनाई की -
सरकती जाए है रुख से नक़ाब आहिस्ता आहिस्ता
निकलता आ रहा है आफ़ताब आहिस्ता आहिस्ता
आफ़ताब यानी सूरज। जो पूरी दुनिया को रोशन करता है. धीरे धीरे ही निकलता है न?
और शेर अर्ज़ किया है कि ...
जवां होने लगे जब वो तो हम से कर लिया पर्दा
हया यक-लख्त आयी और शबाब आहिस्ता आहिस्ता
तो शबाब यानी जवानी और खूबसूरती वो तो धीरे धीरे आया और हया यानी शर्म जिसने हमारे हीरो पे इतना गज़ब ढाया वो खटाक से आ गयी।
धीरे धीरे का हमारे जीवन में बहुत महत्व है
दोस्ती धीरे धीरे गहरी होती है
प्यार धीरे धीरे परवान चढ़ता है
और दुश्मनी एक सेकंड में हो जाती है.
मुसीबत फटाक से आती है
दुर्घटना एक पल में घट जाती है और बहुत बार जल्दी की वजह से घटती है
अंग्रेजी में कहते हैं
Haste makes waste.
और हिंदी में कहते हैं - जल्दी का काम शैतान का
तो जल्दी और जल्दबाज़ी से तौबा कीजिये और इस शायर की बात पर गौर कीजिये जिसने धीरे धीरे के सिद्धांत को न सिर्फ समझा है बल्कि पूरी तरह से आत्मसात कर लिया है
लगा लाये तो हैं उन्हें राह पर बातों बातों में
और खुल जाएंगे दो-चार मुलाकातों में
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