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Ghazal - Farz karo hum ahle-wafa hoN
फ़र्ज़ करो ये दोनों बातें झूटी हों अफ़साने हों
फ़र्ज़ करो ये जी की बिपता जी से जोर सुनायी हो
फ़र्ज़ करो अभी और हो इतनी, आधी हम ने छुपायी हो
फ़र्ज़ करो तुम्हें खुश करने के ढूंडे हम ने बहाने हों
फ़र्ज़ करो ये नैन तुम्हारे सच-मच के मैखाने हों
फ़र्ज़ करो ये रोग हो झुटा झूटी पीट हमारी हो
फ़र्ज़ करो इस पीट के रोग में सांस भी हम पे भारी हो
फ़र्ज़ करो ये जोग-बिजोग का हमने ढोंग रचाया हो
फ़र्ज़ करो बस यही हकीक़त बाकी सब कुछ माया हो
इब्ने इंशा
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Sunday, September 13, 2009
O des se aane waale bata!
So I mention this song again. Well, it's only my all-time favourite. But this might be the last time I mention it.
Tonight I found the soundtrack so I thought I'd tell you. Actually, after looking high and low for this MP3 I found it on Amazon
I am used to buying Audio CDs but buying MP3, I think this was the first experience. Buying MP3 from Amazon is quite a nice experience, you can sample a few seconds of each song in the album and buy either individual songs or the whole album, with a single-click if you are logged in. You can download the purchased MP3 immediately, which is what I really wanted.
I just heard the song after buying, it's well worth the small price.
Before the song Muzaffar Ali speaks in in his baritone voice,
गुलाम तुम भी थे यारो, गुलाम हम भी थे
नहा के खून में आयी थी फ़स्ले आझादी
मज़ा तो तब था के मिलकर इलाज-ए-जाँ करते
खुद अपने हाथ से तामीर-ए-गुलसिताँ करते
हमारे दर्द मे तुम, और तुम्हारे दर्द मे हम
शरीक होते तो जश्न-ए-आशियाँ करते
तुम आओ गुलशन-ए-लाहोर से चमन बरदोश
हम आयें सुबह-ए-बनारस की रोशनी लेकर,
हिमालयों की हवाओं की ताजगी लेकर,
और इसके बाद ये पु्छें, कौन दुष्मन हैं?
(Ali Sardar Jaffery)
Then Abida starts singing in her powerful voice and you forget everything else -
ओ देस से आने वाले बता, ओ देस से आने वाले बता
किस हाल मे है यारां-ए-वतन, वो बाग-ए-वतन, फिरदौस वतन
ओ देस से आने वाले बता, ओ देस से आने वाले बता
क्या अब भी वहाँ के बागों में मस्ताना हवाएं आती हैं
क्या अब भी वहाँ के पर्बतपर घनघोर घटाएं छाती हैं
क्या अब भी वहाँ की बरखायें वैसे ही दिलों को भाती है
ओ देस से आने वाले बता, ओ देस से आने वाले बता
(Akhtar Sheerani)
वो शह़र जो हमसे छुटा है, वो शह़र हमारा कैसा है
सब लोग हमें प्यारे हैं मगर, वो जान से प्यारा कैसा है;
कैसा है?
ओ देस से आने वाले बता, ओ देस से आने वाले बता
(Ahmed Faraz)
क्या अब भी वतन मे वैसे ही सरमस्त नज़ारे होते है
क्या अब भी सुहानी रातों मे वो चांद-सितारे होते है
हम खेल जो खेला करते थे, अब भी वो सारे होते है
ओ देस से आने वाले बता, ओ देस से आने वाले बता
(Akhtar Sheerani)
शब बज्म-ए-हरीफ़ां सजती हैं या शाम ढलें सो जाते है
यारों की बसर औकात है क्या, हर अंजुमन आरा कैसा है;
कैसा है?
ओ देस से आने वाले बता, ओ देस से आने वाले बता
(Ahmed Faraz)
क्या अब भी मेहकते मंदिर से नाकूस की आवाज आती है
क्या अब भी मुकदस मस्जिद पर मस्ताना अज़ान थर्राती है
क्या अब भी वहाँ के पनघट पर पनहारियां पानी भरती है
अंगडाई का नक्शा बन बन कर, सब माथे पे गागर धरती है
और अपने घरों को जाते हुएं हसती हुयीं चुहलें करती है
करती है?
ओ देस से आने वाले बता, ओ देस से आने वाले बता
(Akhtar Sheerani)
मेहरान लहू की धार हुआ, बोलान भी क्या गुलनार हुआ
किस रंग का है दरिया-ए-अटक, रावी का किनारा कैसा है;
कैसा है?
ऐ देस से आने वाले मगर तुमने तो इतना भी पुछा
वो कवी जिसे बनवास मिला, वो दर्द का मारा कैसा है?
कैसा है?
ओ देस से आने वाले बता, ओ देस से आने वाले बता
(Ahmed Faraz)
क्या अब भी किसीके सीने मे बाकी हमारी चाह बता
क्या याद हमे भी करता है अब यारों में कोई आह बता
ओ देस से आने वाले बता, ओ देस से आने वाले बता
लिल्लाह बता, लिल्लाह बता, लिल्लाह बता, लिल्लाह बता…
(Akhtar Sheerani)
Lyrics stolen from the original link I posted on the last post on this ghazal. Here it is again: http://ramblings2reflections.wordpress.com/2007/09/07/o-des-se-aane-wale-bata/